Sunday, August 24, 2008

यूँ ज़हर उड़ाना ठीक नहीं, यूँ खून बहाना ठीक नहीं,
घर आंगन में यूँ मज़हब की दीवार उठाना ठीक नहीं,

ऐ खुदा मुझे बतला दे के मैं तुझको कहाँ तलाश करुँ,
इसकी मस्जिद साफ़ नहीं उसका बुतखाना ठीक नहीं।

यहाँ मौत के फतवे रहते हैं वहाँ धर्म के चाकू चलते हैं,
घर में ही छुप कर रहना बाहर का ज़माना ठीक नहीं।

जाकर फूंको उन महलों को हैवान जहाँ पर रहते हैं,
ये घर मुफलिस इंसानों का इसको तो जलाना ठीक नहीं।

वो मौत के सौदागर हैं सब ये खौफ के सब व्यापारी हैं,
पंडितजी भी पाक नहीं और खान-ऐ-खाना ठीक नहीं।

तुझको भी हो जो नाज़ तो सुन ले सच साकी इस महफिल का,
नफरत की मदिरा बिकती है तेरा मयखाना ठीक नहीं।

उनको भी इल्म है ज़रा ज़रा, लेकिन वो भी समझाते हैं,
ये बातें सच्ची हैं बेकस पर जुबां पे लाना ठीक नहीं।

Friday, August 8, 2008

इस शहर में कलियों से लहू टपकता देखकर,
डर गया मैं अमन को घुट घुट के मरता देखकर,
और जिंदा लाशों के ख़्वाबों को जलता देख कर,
जाता हूँ मालिक अब तुम्हारी रहनुमाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

स्याह रातों में गमजदा नाचती वो औरतें,
कौडियों के मोल बिकती हुई सैकड़ों गैरतें,
और हैवानों के हाथों बिखरती सी जीनतें,
वो गलियां जहाँ दिए घुँघरू सुनाई, देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।


भूख से गिरते हुए और प्यास से मरते हुए,
कंकाल से वो जिस्म दम आखिरी भरते हुए,
डरते हुए जान से और मौत को तरसते हुए,
उन जिस्मों से होती हुई जां की विदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उन लक्ष्मीपुत्रों के घर रहती हैं सदा दीवालियाँ,
और साकी के लिए हैं मोतियों की थालियाँ,
पर हम गरीबों के लिए हर रोज़ मिलती गालियाँ,
उन श्वेत चेहरों पर पुती काली सियाही देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उजले लिबासों वाले वो सेठ और वो शाहजी,
कोठों में छुप गए जब रात कि नौबत बजी,
और फिर नाचीं हैं कुछ लाशें गहनों में सजी,
उन पर्दानशीं चेहरों कि मैंने बेहयाई देखली।
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

इन महल वालों पे मैं पत्थर उठा सकता नही,
तेरी तरह खून की नदियाँ बहा सकता नही,
और मजहब के लिए खंज़र चला सकता नही,
बात ज़ब दम की चली अपनी कलाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



सुन नही सकता हूँ में पंडित की झूठी आरती,
और वो अजाने मुल्ला तुझको ही है पुकारती,
या के ईशा के जनों की प्रार्थना दिल हारती,
मैंने अब तक तुझको सुन, दे दे दुहाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



दिखता है जिसमे अक्स-ऐ-रब मैं वो शीशा तोड़ दूँ,
या के दीवारों से सर टकरा के अपना फोड़ दूँ,
दिल चाहता है आज मैं ख़ुद को तड़पता छोड़ दूँ,
उम्र भर कर के मुकद्दर से लडाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



आ गई गर हाथ में तलवार तो फिर देखना,
कट के गिरेगा किस तरह तू मेरा सिर देखना,
और बुलंद होता हुआ जिस्म-ऐ-फातिर देखना,
मैंने तो मेरी जान से सहकर जुदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



मैं चाहता हूँ आज जहन्नुम और जन्नत फूँक दू,
इक बार मेरा दिल अगर दे दे इजाज़त फूँक दूँ,
मुझ पर तेरी जितनी है सारी इनायत फूँक दूँ,
आग इस दुनिया में है किसने लगाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली.

मेरा ख्वाब था कि मैं कभी दिन के उजाले देखता,
सूरज की किरणों कि चादर सर पे डाले देखता,
बैठता मैं छाँव में फिर पांवों के छाले देखता,
बेकस ने तो सिर्फ अपनी शिकस्तापाई देखली
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

Sunday, August 3, 2008

इक शाम चरागों को बुझाता मिलूँगा,
मिलूँगा पर उजालों से घबराता मिलूँगा।

दीवार-ओ-दर मुझे नसीब न हुए और,
मैं तस्वीर बनके दीवार सजाता मिलूँगा।

जलने से मुझे मिलता है सुकून बेहिसाब,
इक रोज़ ख़ुद के घर को जलाता मिलूँगा।

जलता था मैं तो बरसा नही इक बूँद भी बादल,
मैं लेकिन घटाओं को अश्क पिलाता मिलूँगा।

जिसदिन तुझ को छोड़ देगा ज़माना बेपनाह,
मैं तुझको ऐ दोस्त तब भी बुलाता मिलूँगा।

BEKAS की मुहब्बत को समझेगा जब जहाँ,
मैं तब भी मेरे दिल पे तरस खाता मिलूँगा.

Saturday, August 2, 2008

मेरा दिल चाहता है कि वीराना कह दूँ,
मैं इस एक पल को कैसे ज़माना कह दूँ,

सब लोग हँसते हैं पर दिल नही हँसता,
इस जमघट को कैसे दोस्ताना कह्दूं।

माना की तूने मुझे दिया है बहुत कुछ,
पर तू ही बता कैसे खैरात को नजराना कह दूँ।

जानता हूँ के कई लोग ख़ुद को शम्मा कहते हैं,
मेरा जिगर नही की मैं ख़ुद को परवाना कह दूँ।

तू चाहे की मेरे घर को मैं ताजमहल कहूँ,
मैं तो फकीर हूँ तू बता कैसे अमीराना कह दूँ।

मैं तो घर को घर ही कहता रहूँगा सदा,
मुमकिन नही बेकस कि शराबखाना कह दूँ।

बादा कशों की बस्ती में आया जो तेरा नाम गिरे,

हम थाम रहे थे नज़रों से तेरी जुल्फ खुली तो जाम गिरे।

कासिद जो ख़त लेकर आया उसमे थे नाम रकीबों के,

जिन्हें जिन्दादिली का दावा था पढ़ते ही एक कलाम गिरे।

तेरी एक नज़र से पी हमने फिर इतना खुमार चढा,

तू हंस के उठ गई महफिल से बेकस हम नाकाम गिरे।

Friday, August 1, 2008

लो ख़त्म हुआ अफसाना जी,
अब हमको है उठ जाना जी,
ऐ दिल न रो दुनिया के लिए,
दुनिया है मुसाफिरखाना जी.

पर तुम पहले ये बात सुनो,
मेरे हाथ में देके हाथ सुनो,
टूटी साँसों की मेरी,
आखिरी ग़ज़ल सुन जाना जी.

कल लोग मुझे दफना देंगे,
फिर सब अपना रस्ता लेंगे,
इक बार को फूल चढा देना,
फिर कब्र पे तुम ना आना जी.

कल रात तू फिर तनहा होगी,
जल जायेगा तेरा जोगी,
कुछ काम अधूरे हैं मेरे,
वो तुम पूरे कर आना जी.

बेरंग जहाँ उनका होगा,
लुट गया नगर मन का होगा,
मेरे बाबा को तसल्ली देने तुम,
इक बार मेरे घर जाना जी.

परदेश से भाई आएगा,
मुझको ना घर में पायेगा,
हाथ पकड़ के तुम उसका,
मेरी कब्र पे लेके आना जी.

भाभी भी तो रोती होगी,
रो रो आँखें खोती होगी,
अपनी मीठी बातों से,
दिल उसका भी बहलाना जी,

माँ ये सब झूठा जानेगी,
मुझे अब तक जिंदा मानेगी,
इक रोज़ को घर के कामों में,
तुम उसका हाथ बटाना जी,

में उसकी आंख का तारा था,
जां से भी ज्यादा प्यारा था,
मेरी बहन जो राखी ले आए,
तुम अपना हाथ बढ़ाना जी,

मेरे भाई का छोटा बच्चा,
पूछेगा कहाँ गए चच्चा,
तुम प्यार से उसको बतलाना,
लेकिन मत आँख दिखाना जी.


फिर काम रहेगा इक बाकी,
मैखाने में तनहा साकी,
मेरा जाम लिए बैठी होगी,
तुम एक घूँट पी आना जी.

मैं साथ तेरे दिन रात जिया,
जो तूने कहा मैंने वो किया,
तुम मेरा कर्ज चुका देना,
फिर अपना जहाँ बसाना जी.

दिल को कैसे बहलाओगी,
तनहा कब तक जी पाओगी,
किसी और को साथी कर लेना,
हमको ना याद में लाना जी.

रहना ना कभी अकेले में,
जाना हर सावन मेले में,
तुम दुनिया को अपना लेना,
बेकस तो था बेगाना जी.