इक शाम चरागों को बुझाता मिलूँगा,
मिलूँगा पर उजालों से घबराता मिलूँगा।
दीवार-ओ-दर मुझे नसीब न हुए और,
मैं तस्वीर बनके दीवार सजाता मिलूँगा।
जलने से मुझे मिलता है सुकून बेहिसाब,
इक रोज़ ख़ुद के घर को जलाता मिलूँगा।
जलता था मैं तो बरसा नही इक बूँद भी बादल,
मैं लेकिन घटाओं को अश्क पिलाता मिलूँगा।
जिसदिन तुझ को छोड़ देगा ज़माना बेपनाह,
मैं तुझको ऐ दोस्त तब भी बुलाता मिलूँगा।
BEKAS की मुहब्बत को समझेगा जब जहाँ,
मैं तब भी मेरे दिल पे तरस खाता मिलूँगा.
Sunday, August 3, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
इक शाम चरागों को बुझाता मिलूँगा,
मिलूँगा पर उजालों से घबराता मिलूँगा
बहुत ख़ूब!
जिसदिन तुझ को छोड़ देगा ज़माना बेपनाह,
मैं तुझको ऐ दोस्त तब भी बुलाता मिलूँगा।
bahut umda bahut accha likhte hain aaap..
aise hi likhte rahiye .....
u depicted very beautifull feelings ....
जिसदिन तुझ को छोड़ देगा ज़माना बेपनाह,
मैं तुझको ऐ दोस्त तब भी बुलाता मिलूँगा।
aah kay
a bat kahi bekas
aah kay
a bat kahi bekas
aah kay
a bat kahi bekas
Post a Comment