Wednesday, January 14, 2009

इस दुनिया में मेरा गुजर ना होगा,
वहीं जाऊँगा जहाँ खुदा होगा,

ना तो कुछ अपनों से अदावत,
ना ही रकीबों से वासता होगा,

कुछ दिन खाली रहेगा फ़िर वापस,
घर मेरा खुशियों को खुला होगा,

लोग जब करेंगे मेरी मौत की बातें,
कहेंगे इश्क का मामला होगा,

गर आया में वापस तेरी खातिर,
पर तू मुझे भूल गया होगा

दुनिया में यकीन नही बेकस,
आना खुदा के घर फैसला होगा........

Tuesday, January 13, 2009

आंखों के बादल बरसे तो यादों के निशाँ बह निकलेंगे,

अब के जो साहिल छूटा तो क्या जाने कहाँ बह निकलेंगे,

मशरिक की हवाएं आई तो सुन लेना ऐ मग़रिब वालों,

मुफलिस के घरौंदों से पहले सरवत के मकां बह निकलेंगे,

इखलाश से पे क्या इतराते हो फुरकत के दिन भी आवेंगे,

जब इश्क पुराना होगा तो मजनूँ के गुमां बह निकलेंगे,

इश्क में उम्र गवाने वालो सुनलो तुम ये पल घडियां,

उल्फत के पन्नो पर आई जो बाद-ऐ-शबा बह निकलेंगे,

अफसुर्दा हुज्नल रंजीदा सब सोचो तो बस जज्बे हैं,

साथ हुए तो ग़ज़ल संवर बेकस की जुबां बह निकलेंगे......

Thursday, December 25, 2008

इतराई हुई कलियों की तरह,
इतराया हुआ सा रहता हूँ,
अलसाया हुआ सा रहता हूँ
मैं तनहा रातों की तरह,
आशिक की बातों की तरह,
भरमाया हुआ सा रहता हूँ,

मैं एक ग़ज़ल का हिस्सा हूँ,
शायर की जुबां से फिसल गया,
मस्जिद की किसी आयत की तरह,
दोहराया हुआ सा लगता हूँ,

घबराया हुआ सा रहता हूँ,
गहनों में सजी दुल्हन के हसीं,
घूंघट में छुपे चेहरे की तरह
शरमाया हुआ सा लगता हूँ,
शरमाया हुआ सा रहता हूँ,

इठलाया हुआ सा रहता हूँ,
नदिया के जवां धारे की तरह,
साहिल की तरह में धारे से,
टकराया हुआ सा रहता हूँ,

यादों के किसी खिलोने से,
मुफलिस के किसी बच्चे की तरह,
बहलाया हुआ सा रहता हूँ,
मन्दिर की किसी मूरत की तरह
ठहराया हुआ सा रहता हूँ,
तरसाया हुआ सा रहता हूँ,
मैकश की तरह साकी के लिए,
आधे की तरह बाकी के लिए,
तड़पायाहुआ सा रहता हूँ,

इंसान हूँ में भगवान् नही,
बेकस मैं अपनी सूरत से
घबराया हुआ सा लगता हूँ,
घबराया हुआ सा रहता हूँ,

Sunday, December 21, 2008

जब न आएगी दीवाने की सदा आज के बाद,
कौन पूछेगा तेरे घर का पता आज के बाद।

कैस पूछेगा असीरी क्या है बतला फ़िर तो,
कौन मानेगा मुहब्बत को खुदा आज के बाद।

मैं न रहूँगा तो गुलों मत खिलना तुम भी,
कौन आयेगा ऐ चमन तू बता आज के बाद।

आँख पुरनम है रहेगी ये सहर तक बस,
फिर न बरसेगी तबस्सुम की घटा आज के बाद।

यूँ तो आयेंगे कई तुझसे मिलने लेकिन,
वो न मानेंगे तेरे दर को खुदा आज के बाद।

माना दिलकश है सफर तनहा रातों का
के न आए इस शब् की सबा आज के बाद।

ग़म है बेकस कि तुझे जाना है फ़िर भी,
तुझको ढूंढेंगी बिना दर की वफ़ा आज के बाद........।

Monday, November 17, 2008

क्या समझना था क्या समझे,

वो मुझ को भी बेवफा समझे,

तेरी आंखों में मैकदा देखा,

तेरी जुल्फों को घटा समझे,

लोगों पर यकीन कर बैठे,

तुम भी मुझे कहाँ समझे,

तू हमें नादान न कहना,

हम मुहब्बत को खुदा समझे,

उम्र ढल गई कदम फिसले,

लोगों ने देखा सब पिया समझे,

निगाहों में बसा है वो इस तरह,

जिसको देखा साक़िया समझे,

जाते हुए उसने मुझसे कहा,

राज़-ऐ-दिल बेकस कहाँ समझे,

उम्र भर जलता रहा,
धूप में चलता रहा,
बेवफाओं के साथ भी जो वफ़ा करता रहा,

लोग समझाते रहे,
ख्वाब तड़पाते रहे,
हमसफ़र राह में छोड़ कर जाते रहे,

पर मुसाफिर था अजब,
दीवाना कहते थे सब,
जख्म दुनिया के सहे बंद रख के अपने लब,

उम्र गुजरती रही,
ख्वाहिशें मरती रही,
उसका तमन्ना सिसकती आहें ही भरती रही,

रवायते हावी रही,
हिकारतें हावी रहीं,
उसकी चाहत पर जहाँ की नफरतें हावी रही,

आंधियां चलती रही,
रुतें बदलती रहीं,
लेकिन उस मजार पे शम्मा-ऐ-दिल जलती रही,

उम्र भर की प्यास से,
जाने किस अहसास से,
समेट कर के चंद अपने ख्वाब-ae-दिल उदास से,

एक दिन घर छोड़ कर,
शहर तनहा छोड़ कर,
चली गई रूह-ऐ-बेकस जिस्म-ऐ-फातिर छोड़ कर,

हाँ तेरा शहर छोड़ कर,
वो मुसाफिर चला गया,
जाने किधर चला गया,
जाने किधर चला गया.......................
देख जरा ये मंजर देख,
आंखों में है समंदर देख।

मुझको बाहर क्या ढूंढें है,
अपने दिल के अन्दर देख।

देख मेरे दिल के टुकड़े फिर,
अपनी जुबां का खंजर देख।

तेरी खातिर बरस रहे हैं,
मेरे घर में पत्थर देख,

अपना गुलशन देख हरा या,
बेकस का जलता घर देख,