Friday, August 8, 2008

इस शहर में कलियों से लहू टपकता देखकर,
डर गया मैं अमन को घुट घुट के मरता देखकर,
और जिंदा लाशों के ख़्वाबों को जलता देख कर,
जाता हूँ मालिक अब तुम्हारी रहनुमाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

स्याह रातों में गमजदा नाचती वो औरतें,
कौडियों के मोल बिकती हुई सैकड़ों गैरतें,
और हैवानों के हाथों बिखरती सी जीनतें,
वो गलियां जहाँ दिए घुँघरू सुनाई, देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।


भूख से गिरते हुए और प्यास से मरते हुए,
कंकाल से वो जिस्म दम आखिरी भरते हुए,
डरते हुए जान से और मौत को तरसते हुए,
उन जिस्मों से होती हुई जां की विदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उन लक्ष्मीपुत्रों के घर रहती हैं सदा दीवालियाँ,
और साकी के लिए हैं मोतियों की थालियाँ,
पर हम गरीबों के लिए हर रोज़ मिलती गालियाँ,
उन श्वेत चेहरों पर पुती काली सियाही देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उजले लिबासों वाले वो सेठ और वो शाहजी,
कोठों में छुप गए जब रात कि नौबत बजी,
और फिर नाचीं हैं कुछ लाशें गहनों में सजी,
उन पर्दानशीं चेहरों कि मैंने बेहयाई देखली।
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

इन महल वालों पे मैं पत्थर उठा सकता नही,
तेरी तरह खून की नदियाँ बहा सकता नही,
और मजहब के लिए खंज़र चला सकता नही,
बात ज़ब दम की चली अपनी कलाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



सुन नही सकता हूँ में पंडित की झूठी आरती,
और वो अजाने मुल्ला तुझको ही है पुकारती,
या के ईशा के जनों की प्रार्थना दिल हारती,
मैंने अब तक तुझको सुन, दे दे दुहाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



दिखता है जिसमे अक्स-ऐ-रब मैं वो शीशा तोड़ दूँ,
या के दीवारों से सर टकरा के अपना फोड़ दूँ,
दिल चाहता है आज मैं ख़ुद को तड़पता छोड़ दूँ,
उम्र भर कर के मुकद्दर से लडाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



आ गई गर हाथ में तलवार तो फिर देखना,
कट के गिरेगा किस तरह तू मेरा सिर देखना,
और बुलंद होता हुआ जिस्म-ऐ-फातिर देखना,
मैंने तो मेरी जान से सहकर जुदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।



मैं चाहता हूँ आज जहन्नुम और जन्नत फूँक दू,
इक बार मेरा दिल अगर दे दे इजाज़त फूँक दूँ,
मुझ पर तेरी जितनी है सारी इनायत फूँक दूँ,
आग इस दुनिया में है किसने लगाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली.

मेरा ख्वाब था कि मैं कभी दिन के उजाले देखता,
सूरज की किरणों कि चादर सर पे डाले देखता,
बैठता मैं छाँव में फिर पांवों के छाले देखता,
बेकस ने तो सिर्फ अपनी शिकस्तापाई देखली
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

5 comments:

شہروز said...

भाई करीब सारी पोस्ट पढ़ गया.रचना-धर्म का पालन आप बखूबी कर रहे हैं.
बस यही दुआ है जोर-क़लम और ज़्यादा.

Pragya said...

bas nazar hati hi nahi post se...
bahut khoob ... aaj ke manjar ko bahut khoobsurati se bayaan kiya hai..

!!अक्षय-मन!! said...

आ गई गर हाथ में तलवार तो फिर देखना,
कट के गिरेगा किस तरह तू मेरा सिर देखना,
और बुलंद होता हुआ जिस्म-ऐ-फातिर देखना,
मैंने तो मेरी जान से सहकर जुदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

वाह! मित्र इस पूरी रचना ने मुझे उमंग से भर दिया बहुत ही प्यारा लिखा है हर मिसरे का दीवाना हो गया

सूरज की किरणों कि चादर सर पे डाले देखता,
बैठता मैं छाँव में फिर पांवों के छाले देखता,

क्या लिखा है बहुत ही बढ़िया....आपका मित्र अक्षय-मन

श्रद्धा जैन said...

Bekas bhaut hi sunder aur joshili rachna
maine ise pahile bhi padha tha aur ab bhi padhna bhaut achha laga
likhte raho kyuki tumhari kalam main jadu hai

Anonymous said...

क्या कहूँ, लाजवाब!