Thursday, December 25, 2008

इतराई हुई कलियों की तरह,
इतराया हुआ सा रहता हूँ,
अलसाया हुआ सा रहता हूँ
मैं तनहा रातों की तरह,
आशिक की बातों की तरह,
भरमाया हुआ सा रहता हूँ,

मैं एक ग़ज़ल का हिस्सा हूँ,
शायर की जुबां से फिसल गया,
मस्जिद की किसी आयत की तरह,
दोहराया हुआ सा लगता हूँ,

घबराया हुआ सा रहता हूँ,
गहनों में सजी दुल्हन के हसीं,
घूंघट में छुपे चेहरे की तरह
शरमाया हुआ सा लगता हूँ,
शरमाया हुआ सा रहता हूँ,

इठलाया हुआ सा रहता हूँ,
नदिया के जवां धारे की तरह,
साहिल की तरह में धारे से,
टकराया हुआ सा रहता हूँ,

यादों के किसी खिलोने से,
मुफलिस के किसी बच्चे की तरह,
बहलाया हुआ सा रहता हूँ,
मन्दिर की किसी मूरत की तरह
ठहराया हुआ सा रहता हूँ,
तरसाया हुआ सा रहता हूँ,
मैकश की तरह साकी के लिए,
आधे की तरह बाकी के लिए,
तड़पायाहुआ सा रहता हूँ,

इंसान हूँ में भगवान् नही,
बेकस मैं अपनी सूरत से
घबराया हुआ सा लगता हूँ,
घबराया हुआ सा रहता हूँ,

3 comments:

"अर्श" said...

बहोत खूब कहा आपने बेहद उम्दा रचना ..... शब्द नही है वह कहने के लिए ढेरो बधाई स्वीकार करें ....


अर्श

Smart Indian said...

नव-वर्ष की शुभकामनाएं!

Anonymous said...

jo samajh aa gai uski tareef kar lu!
its awesome! :D
(sorry mere comment hindi me nahi)