आंखों के बादल बरसे तो यादों के निशाँ बह निकलेंगे,
अब के जो साहिल छूटा तो क्या जाने कहाँ बह निकलेंगे,
मशरिक की हवाएं आई तो सुन लेना ऐ मग़रिब वालों,
मुफलिस के घरौंदों से पहले सरवत के मकां बह निकलेंगे,
इखलाश से पे क्या इतराते हो फुरकत के दिन भी आवेंगे,
जब इश्क पुराना होगा तो मजनूँ के गुमां बह निकलेंगे,
इश्क में उम्र गवाने वालो सुनलो तुम ये पल घडियां,
उल्फत के पन्नो पर आई जो बाद-ऐ-शबा बह निकलेंगे,
अफसुर्दा हुज्नल रंजीदा सब सोचो तो बस जज्बे हैं,
साथ हुए तो ग़ज़ल संवर बेकस की जुबां बह निकलेंगे......
2 comments:
bahut khub
बहुत से शब्द समझ नहीं सका. मगर जितना समझा अच्छा लगा.
Post a Comment