Thursday, July 17, 2008

अक्सर राहों में मिलता है पर बात करे तो क्या कहना,
तन्हाई में वो बेकस को जो याद करे तो क्या कहना

हम तो उसको बतला ना सके आलम अपनी गमख्वारी का,
वो भी हमारी उल्फत में गर आह भरे तो क्या कहना,

लोगों ने बहुत सताया है उसको पत्थरदिल कह कह कर
रस्मों से बगावत आज अगर वो कर गुजरे तो क्या कहना,

रहता है वफ़ा के पर्दों में ढककर के अपनी ज़फाओं को,
वो मुझपे बेवफा होने का इल्जाम धरे तो क्या कहना,

कल जो था वो आज नहीं जो आज है वो कल जायेगा,
BEKAS को भी मरना है, घुट घुट के मरे तो क्या कहना..............

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