वो कल मुझसे कह कर गया कि तुम
मेरी परवाह करती हो,
मेरी चाह करती हो,
रहमत तेरी है ,
किस्मत मेरी है,
कि तुम मेरी चाह करती हो,
मेरी परवाह करती हो,
बरसो पहले,
मेले में अकेले में,
हम भी तुझे याद करते थे,
दिल में घर बनाते थे,
उसमे तुझे बुलाते थे,
और तुम आते थे,
तब में औरों से कहता था,
की,
तुम, मेरी चाह करते थे,
मेरी परवाह करते थे,
अब तुम शीशे के महल में रहते हो,
और खुद को तनहा कहते हो,
अब ये दिल रोता है,
घर भी खाली है,
क्यूंकि,
तुमने बस्ती कहीं दूर बसाली है,
और औरों से कहते हो कि ,
मेरी चाह करते हो,
मेरी परवाह करते हो,
ये रहमत तेरी है,
और किस्मत मेरी है ,
कि तुम मेरी चाह करते हो,
मेरी परवाह करते हो........
Saturday, July 26, 2008
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1 comment:
बहुत खुब, धन्यवाद
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