Wednesday, July 30, 2008

कभी कभी इस दिल की कुछ ऐसी भी हालत रहती है,
एक कदम चलने की फिर रुकने की हिदायत रहती है।

तू इस तरहा रोका ना कर मैखाने जाने वालों को,
कि कुछ लोगों को मै की नही साकी की आदत रहती है।

नंगे पांव चले कब तक कोई रेत की जलती चादर पर,
तपती दुपहरी में हम को अब रात की चाहत रहती है।

जिस दिन उनका ये कहना कि शाम को पनघट पर मिलना,
खुदा कसम उस दिन की तो हर बात क़यामत रहती है।

लगता है किसी दिन अब मेरे घर पर भी पत्थर बरसेंगे,,
उनकी खातिर अब अपनी दुनिया से अदावत रहती है।

चुपके चुपके पीते हैं अहल-ऐ-रकीबां से बचके,
अपनी भी हिफाज़त रहती है उनकी भी इजाज़त रहती है।

BEKAS के घर का होता है ये आम नज़ारा ऐ लोगों,
हर रोज़ जनाजा उठता है हर शाम को मय्यत रहती है.

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह !बेकस जी,बहुत बढिया लिखा है।

तू इस तरहा रोका ना कर मैखाने जाने वालों को,
कि कुछ लोगों को मै की नही साकी की आदत रहती है।