देख जरा ये मंजर देख,
आंखों में है समंदर देख।
मुझको बाहर क्या ढूंढें है,
अपने दिल के अन्दर देख।
देख मेरे दिल के टुकड़े फिर,
अपनी जुबां का खंजर देख।
तेरी खातिर बरस रहे हैं,
मेरे घर में पत्थर देख,
अपना गुलशन देख हरा या,
बेकस का जलता घर देख,
Monday, November 17, 2008
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