Monday, July 28, 2008

घन घोर घटाओं की तरहा गैरों के घर बरसे तो क्या,
तेरी बला से हम बरसों प्यासे प्यासे तरसे तो क्या।

तुम जा जा मिले रकीबों से कभी शाम ढले कभी छांव तले,
रखते हैं खबर हम दुनिया की निकले जो नहीं घर से तो क्या।

कोई कहता था के आई थी बादे शबा इन गलियों में,
पर अपने घर तो आई नहीं वो निकली बाहर से तो क्या।

तेरे शहर में सारे लोग मुझे कुछ उकता कर के मिलते थे,
वो शहर हमें हंस कर ही मिला कुछ लोग थे पत्थर से तो क्या।

हर जगह हमें सुनने को मिला के BEKAS तो दीवाना है,
हर गाँव में अपना गाँव मिला हम निकल गए दर से तो क्या।

1 comment:

Rohit Bansal said...

you are really rocking dear, Never knew you have that much capability. Really i am stunned. Keep writing dude.