शीशे के घर में पत्थर की बात करता था,
अजीब शख्श था कहर की बात करता था।
थका हुआ था दौर-ऐ-अंजुमन से तो,
अक्सर वो अपने सफ़र की बात करता था।
रातों में उठता था दीवानों की तरह और,
कभी शाम कभी सहर की बात करता था।
देखा करता था अपने हाथों की लकीरें,
अपने उजडे हुए मुकद्दर कि बात करता था।
किसकी बात किया करता था BEKAS,
वो एक बीमार सुखनवर की बात करता था।
Wednesday, July 30, 2008
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2 comments:
bekas ji, kya kamal ash'aar mein ghazal Dubo dee, kamaal hai!
देखा करता था अपने हाथों की लकीरें,
अपने उजडे हुए मुकद्दर कि बात करता था।
bahut unda aur kya kahuin bahut khub..
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