Sunday, July 27, 2008

हमारे ख्वाब सरीखे थे.

हम क्यूँ नहीं मिल सके,
ये उसका सवाल था,
हमारे खयालात एक थे,
हमारे हालात एक थे,
फिर भी हम क्यूँ नहीं मिल सके,

मेरा जवाब था क्यूंकि,

तुझे शौक था तनहा रहने का, मुझे आदत थी वीराने की,
आग से मुझे मुहब्बत थी, तेरी हसरत थी खुद को जलाने की ,

हम इसी लिए नहीं मिले,
क्यूंकि हमारे,
हमारे खयालात एक थे,
हमारे हालात एक थे।

खयालात तेरे थे ज़ख्मी और हालात मेरे भी फीके थे,
हम दोनों मिल न सके अपने जो ख्वाब थे एक सरीखे थे,

हमारे खयालात एक थे,
हमारे हालात एक थे,
इसी लिए हम मिल न सके..........

2 comments:

Anwar Qureshi said...

वाह हुज़ूर वाह क्या बात कही है ..
तुझे शौक था तनहा रहने का, मुझे आदत थी वीराने की,
आग से मुझे मुहब्बत थी, तेरी हसरत थी खुद को जलाने की ,


खयालात तेरे थे ज़ख्मी और हालात मेरे भी फीके थे,
हम दोनों मिल न सके अपने जो ख्वाब थे एक सरीखे थे,
सच में बहुत खूब लिखा है आप ने ...

pratibha said...

really aap bahut hi achhha likhte ho aur ab tak jo maine poems padi hain ye unse different hai ,,,,,,,keep it up