आज फिर दिल ने कहा कि प्यार की बातें करें,
जैसे खिजां में बैठ कर बहार की बातें करें।
यादों के दरिया में डूब जाएं और फिर,
मांझी की कश्ती की पतवार की बातें करें।
आज साकी मेहरबां है करता नहीं हिसाब,
मिलती है मुफ्त तो फिर क्यूँ उधार की बातें करें।
अब खाक भी बिखर गई आँधियों में वक़्त कि,
जिसको जले बरसों हुए उस घर बार की बातें करें।
हर बार रुसवा हम हुए कभी इस तरह कभी उस तरह,
जिस बार तूने बात की उस बार की बातें करें।
इस जहाँ में है कहाँ कोई तन्हाई का चारागर,
बैठें हम इस पार और उस पार की बातें करें।
दिल कि बात करेंगे तो बढ़ने लगेगा दर्द,
बेहतर है कि हम तेरे रुखसार की बातें करें।
BEKAS के घर में थी और भी चीज़ें कई,
हर बार क्यूँ हम एक ही दीवार की बातें करें।
Monday, July 28, 2008
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1 comment:
bhai, wah! kamaal ka likhte ho!
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