Monday, November 17, 2008

क्या समझना था क्या समझे,

वो मुझ को भी बेवफा समझे,

तेरी आंखों में मैकदा देखा,

तेरी जुल्फों को घटा समझे,

लोगों पर यकीन कर बैठे,

तुम भी मुझे कहाँ समझे,

तू हमें नादान न कहना,

हम मुहब्बत को खुदा समझे,

उम्र ढल गई कदम फिसले,

लोगों ने देखा सब पिया समझे,

निगाहों में बसा है वो इस तरह,

जिसको देखा साक़िया समझे,

जाते हुए उसने मुझसे कहा,

राज़-ऐ-दिल बेकस कहाँ समझे,

उम्र भर जलता रहा,
धूप में चलता रहा,
बेवफाओं के साथ भी जो वफ़ा करता रहा,

लोग समझाते रहे,
ख्वाब तड़पाते रहे,
हमसफ़र राह में छोड़ कर जाते रहे,

पर मुसाफिर था अजब,
दीवाना कहते थे सब,
जख्म दुनिया के सहे बंद रख के अपने लब,

उम्र गुजरती रही,
ख्वाहिशें मरती रही,
उसका तमन्ना सिसकती आहें ही भरती रही,

रवायते हावी रही,
हिकारतें हावी रहीं,
उसकी चाहत पर जहाँ की नफरतें हावी रही,

आंधियां चलती रही,
रुतें बदलती रहीं,
लेकिन उस मजार पे शम्मा-ऐ-दिल जलती रही,

उम्र भर की प्यास से,
जाने किस अहसास से,
समेट कर के चंद अपने ख्वाब-ae-दिल उदास से,

एक दिन घर छोड़ कर,
शहर तनहा छोड़ कर,
चली गई रूह-ऐ-बेकस जिस्म-ऐ-फातिर छोड़ कर,

हाँ तेरा शहर छोड़ कर,
वो मुसाफिर चला गया,
जाने किधर चला गया,
जाने किधर चला गया.......................
देख जरा ये मंजर देख,
आंखों में है समंदर देख।

मुझको बाहर क्या ढूंढें है,
अपने दिल के अन्दर देख।

देख मेरे दिल के टुकड़े फिर,
अपनी जुबां का खंजर देख।

तेरी खातिर बरस रहे हैं,
मेरे घर में पत्थर देख,

अपना गुलशन देख हरा या,
बेकस का जलता घर देख,

Sunday, November 16, 2008

किस्सागरोंसे सुन या सुन मेरी जुबान से,
वो सड़क पर सोया किए था बड़ी शान से,


घर की तलाश में निकल कर मकान से,
मरासिम तोड़ आया था सारे जहानसे,

जिंदगी को ढूँढने निकला तो था मगर,
बेकस हाथ धो गया अपनी ही जान से,

सूरज कि रोशनी से जला था एक बार,
घबराता रहा तमाम उम्र आसमान से,

कहते थे लोग के अजब काफिर था बेफरक
आरती सुनता था मस्जिद की अजान से,

ग़ज़ल कहता था कुछ कमबख्त इस तरह
कि जान ले लेता था अंदाज़-ऐ-बयान से

जिंदगी को ढूँढने गया निकला तो था मगर,
बेकस हाथ धो गया अपनी ही जान से.......................

Thursday, November 13, 2008

सुनो साथी,
मुझे तुमसे,
जरूरी बात करनी है.
सच है कि,
तुम्हारा भी,
मैंने दिल दुखाया है,
मैं अपनी,
खताओं की,
अगर माफी मांग लूँ तो,
मुझे तुम माफ़ मत करना,
सजा देना जो तुम चाहो,
पर मुझको माफ़ करना,
सुना है तुम,
रहमदिल हो,
खताएं बख्श देते हो,
पर अब भी,
अगर मेरी,
खताएं भूल बैठे तुम,
तो मैं सुधरूंगा कैसे,
सच कहता हूँ,
तुम मेरी,
बातों पर यकीन करलो,
मैं जाहिल हूँ,
संगदिल हूँ,
अगर इस पत्थर को तुम भी,
इक मूरत बना लोगे,
तो मुझको,
ग़लत सच का,
फर्क मालूम कब होगा,
हाँ सच है,
कि मेरे भी,
सीने में दिल धड़कता है,
अगर बदनाम होने से,
बचा लोगे इस दिल को,
तो मुझे सज़ा कैसे होगी,
तुम जहीन हो,
समझते हो,
अपना भी,
पराया भी,
मेरे दिल की खताओं को,
तुम इक जुर्म समझ लेना,
सजा देना जो तुम चाहो,
अकेला हूँ,
इसलिए तुम,
इस तरहा रूठ मत जाना,
मेरे दिल की
खताओं को,
एक दम भूल मत जाना,
अगर तुम माफ़ कर दोगे,
मेरे दिल की खताओं को,
तुम्ही बोलो,
फिर कैसे,
मैं ख़ुद को माफ़ कर दूँ गा,
ये मुमकिन है,
मैं यूंही,
तुम्हारी जान खाता हूँ,
पराये हो,
मगर फिर भी,
मैं अपना हक़ जताता हूँ,
मुझे तुम माफ़ मत करना,
नहीं तो मैं,
गिर जाऊँगा,
ख़ुद अपनी ही नज़रों से,
गुजारिश है,
सज़ा देना,
मगर तुम सज़ा क्या दोगे,
मैं कहता हूँ,
सज़ा मेरी,
मुझे तूम भूल ही जाना,
इससे अच्छी,
सज़ा कोई,
मुझे मिल ही नही सकती,
शुक्रिया है,
की तुमने,
मेरी ये बात सुनली है,
अब तुम ये मान भी लो,
सच बोलूँ,
मुझे तुमसे,
यही इक बात करनी थी................

Wednesday, November 12, 2008

जोगिया जाती नहीं है प्रीत परवानों की यूँ,
चाहे शम्मा जान लेले उसके दीवानों की यूँ।

चाहे मन्दिर लुट जाए या कि मस्जिद जल जाए,
आबरू मिटती नही है मेरे मैखानों की यूँ।

साकिया तू छोड़ दे बाजू भले ही हाँ मगर,
आदत नही है छोड़ने की देख पैमानों की यूँ।

ज़माने भर में नाम मशहूर कर देती है शराब,
और भी बढ़ा देती है इज्जत इंसानों की यूँ।

भीड़ में तन्हाई देकर भेजता है मैकदे,
जान ले लेता है बेकस प्यार इंसानों की यूँ.
वो ख़त के पुर्जे जला दिए,
वो फूल रेत में दबा दिए,

मुझे ज़माना भूल गया,
मैंने भी जमाने भुला दिए,

आँखों की गुस्ताखी ने,
ख़्वाबों के दीपक बुझा दिए,

कुछ लोगों ने छोटी सी,
बातों के फ़साने बना दिए,

कुछ लोगों ने राज़ गजब के,
दिल ही दिल में दबा दिए,

हमने उनका दर्द ले लिया,
रंज हमारे छुपा दिए,

जिनकी खातिर बेकस ने,
गिन कर बरसों बिता दिए,

आज उन्होंने बेकस की,
लाश पे चाकू चला दिए।