Sunday, November 16, 2008

किस्सागरोंसे सुन या सुन मेरी जुबान से,
वो सड़क पर सोया किए था बड़ी शान से,


घर की तलाश में निकल कर मकान से,
मरासिम तोड़ आया था सारे जहानसे,

जिंदगी को ढूँढने निकला तो था मगर,
बेकस हाथ धो गया अपनी ही जान से,

सूरज कि रोशनी से जला था एक बार,
घबराता रहा तमाम उम्र आसमान से,

कहते थे लोग के अजब काफिर था बेफरक
आरती सुनता था मस्जिद की अजान से,

ग़ज़ल कहता था कुछ कमबख्त इस तरह
कि जान ले लेता था अंदाज़-ऐ-बयान से

जिंदगी को ढूँढने गया निकला तो था मगर,
बेकस हाथ धो गया अपनी ही जान से.......................

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