Wednesday, November 12, 2008

जोगिया जाती नहीं है प्रीत परवानों की यूँ,
चाहे शम्मा जान लेले उसके दीवानों की यूँ।

चाहे मन्दिर लुट जाए या कि मस्जिद जल जाए,
आबरू मिटती नही है मेरे मैखानों की यूँ।

साकिया तू छोड़ दे बाजू भले ही हाँ मगर,
आदत नही है छोड़ने की देख पैमानों की यूँ।

ज़माने भर में नाम मशहूर कर देती है शराब,
और भी बढ़ा देती है इज्जत इंसानों की यूँ।

भीड़ में तन्हाई देकर भेजता है मैकदे,
जान ले लेता है बेकस प्यार इंसानों की यूँ.

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