Thursday, November 13, 2008

सुनो साथी,
मुझे तुमसे,
जरूरी बात करनी है.
सच है कि,
तुम्हारा भी,
मैंने दिल दुखाया है,
मैं अपनी,
खताओं की,
अगर माफी मांग लूँ तो,
मुझे तुम माफ़ मत करना,
सजा देना जो तुम चाहो,
पर मुझको माफ़ करना,
सुना है तुम,
रहमदिल हो,
खताएं बख्श देते हो,
पर अब भी,
अगर मेरी,
खताएं भूल बैठे तुम,
तो मैं सुधरूंगा कैसे,
सच कहता हूँ,
तुम मेरी,
बातों पर यकीन करलो,
मैं जाहिल हूँ,
संगदिल हूँ,
अगर इस पत्थर को तुम भी,
इक मूरत बना लोगे,
तो मुझको,
ग़लत सच का,
फर्क मालूम कब होगा,
हाँ सच है,
कि मेरे भी,
सीने में दिल धड़कता है,
अगर बदनाम होने से,
बचा लोगे इस दिल को,
तो मुझे सज़ा कैसे होगी,
तुम जहीन हो,
समझते हो,
अपना भी,
पराया भी,
मेरे दिल की खताओं को,
तुम इक जुर्म समझ लेना,
सजा देना जो तुम चाहो,
अकेला हूँ,
इसलिए तुम,
इस तरहा रूठ मत जाना,
मेरे दिल की
खताओं को,
एक दम भूल मत जाना,
अगर तुम माफ़ कर दोगे,
मेरे दिल की खताओं को,
तुम्ही बोलो,
फिर कैसे,
मैं ख़ुद को माफ़ कर दूँ गा,
ये मुमकिन है,
मैं यूंही,
तुम्हारी जान खाता हूँ,
पराये हो,
मगर फिर भी,
मैं अपना हक़ जताता हूँ,
मुझे तुम माफ़ मत करना,
नहीं तो मैं,
गिर जाऊँगा,
ख़ुद अपनी ही नज़रों से,
गुजारिश है,
सज़ा देना,
मगर तुम सज़ा क्या दोगे,
मैं कहता हूँ,
सज़ा मेरी,
मुझे तूम भूल ही जाना,
इससे अच्छी,
सज़ा कोई,
मुझे मिल ही नही सकती,
शुक्रिया है,
की तुमने,
मेरी ये बात सुनली है,
अब तुम ये मान भी लो,
सच बोलूँ,
मुझे तुमसे,
यही इक बात करनी थी................

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